Thursday 19 May 2016

1857 का हिंडन युध्द / 1857 War of Hindon Revolt

हिंडन का युध्द - 1857 का गदर

1857 war of Hindon in between Gurjar Mutineers and British Army in 1857 Revolution 

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में मेरठ और दिल्ली की सीमा पर हिंडन नदी के किनारे 30, 31 मई 1857 को राष्ट्रवादी सेना और अंग्रेजों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ था जिसमें गुर्जरो ने दादरी के राजा राव उमराव सिंह गुर्जर के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिये थे।जैसा कि विदित है कि 10मई 1857 को मेरठ में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरो ने विद्रोह कर दिया और रात में ही वो दिल्ली कूच कर गए थे। 11 मई को इन्होंने अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया और अंग्रेजों को दिल्ली के बाहर खदेड़ दिया।अंग्रेजों ने दिल्ली के बाहर रिज क्षेत्र में शरण ले ली।तत्कालीन परिस्थितियों में दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार के लिए मेरठ क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण था।न केवल मेरठ से गुर्जर विद्रोह की शुरूआत हुई थी वरन पूरे मेरठ क्षेत्र में,सहारनपुर से लेकर बुलन्दशहर तक के गुर्जर इस अंग्रेज विरोधी संघर्ष में कूद पड़े थे। ब्रिटिश विरोधी संघर्ष ने यहाँ जन आन्दोलन और  स्थिति को देखते हुए मुगल बादशाह ने मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान को इस क्षेत्र का नायब सूबेदार बना दिया,उसने इस क्षेत्र की गुर्जर क्रान्तिकारी गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिये दादरी में क्रान्तिकारियों के नेता राजा उमराव सिंह गुर्जर से सम्पर्क साधा जिसने दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार का पूरा साथ देने का वादा किया।मेरठ में अंग्रेजों के बीच अफवाह थी कि गुर्जर बड़ी भारी संख्या में, मेरठ पर हमला कर सकते हैं अंग्रेज मेरठ को बचाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे क्योंकि मेरठ पूरे डिवीजन का केन्द्र था। मेरठ को आधार बनाकर ही अंग्रेज इस क्षेत्र में क्रान्ति का दमन कर सकते थे।अंग्रेज इस सम्भावित हमले से रक्षा की तैयारी में जुट गए। मेरठ होकर वापिस गए दो व्यक्तियों ने बहादुर शाह जफर को बताया कि 1000 यूरोपिय सैनिकों ने सूरज कुण्ड पर एक किले का निर्माण कर लिया है।इस प्रकार दोनों और युद्ध की तैयारियां जोरो पर थी। तकरीबन 20
मई 1857 को गुर्जरो ने हिंडन नदी का पुल तोड़ दिया जिससे दिल्ली के रिज क्षेत्र में शरण लिए अंग्रेजों का सम्पर्क मेरठ और उत्तरी जिलो से टूट गया।इस बीच युद्ध का अवसर आ गया जब दिल्ली को पुनः जीतने के लिए अंग्रेज़ों  की एक विशाल सेना प्रधान सेनापति बर्नाड़ के नेतृत्व में अम्बाला छावनी से चल पड़ी।सेनापति बर्नाड ने दिल्ली पर धावा बोलने से पहले मेरठ की अंग्रेज सेना को साथ ले लेने का निर्णय किया। अतः 30 मई 1857 को जनरल आर्कलेड विल्सन की अध्यक्षता में मेरठ की अंग्रेज़ सेना बर्नाड का साथ देने के लिए गाजियाबाद के निकट हिंडन नदी के तट पर पहुँच गई। किन्तु इन दोनों सेनाओं को मिलने से रोकने के लिए क्रान्तिकारी सैनिकों और आम जनता ने भी हिन्डन नदी के दूसरी तरफ मोर्चा लगा रखा था।जनरल विल्सन की सेना में 60वीं शाही राइफल्स की 4 कम्पनियां, कार्बाइनरों की 2 स्क्वाड्रन, हल्की फील्ड बैट्री, ट्रुप हार्स आर्टिलरी, 1 कम्पनी हिन्दुस्तानी सैपर्स एवं माईनर्स, 100 तोपची एवं हथगोला विंग के सिपाही थे।अंग्रेजी सेना अपनी सैनिक व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रही थी कि क्रान्तिकारी सेना ने उन पर तोपों से आक्रमण
कर दिया।भारतीयों की राष्ट्रवादी सेना की कमान मुगल शहजादे मिर्जा अबू बक्र ,दादरी के राजा उमराव सिंह गुर्जर एवं नवाब वलीदाद खान के हाथ में थी। भारतीयों की सेना में बहुत से घुड़सवार, पैदल और घुड़सवार तोपची थे।गुर्जरो ने तोपे पुल के सामने एक ऊँचे टीले पर लगा रखी थी।गुर्जरो की गोलाबारी ने अंग्रेजी सेना के अगले भाग को क्षतिग्रस्त कर दिया अंग्रेजों ने रणनीति बदलते हुए भारतीय सेना के बायें भाग पर जोरदार
हमला बोल दिया। इस हमले के लिए अंग्रेजों ने 18 पौंड के तोपखाने, फील्ड बैट्री और घुड़सवार तोपखाने का प्रयोग किया। इससे क्रान्तिकारी सेना को पीछे हटना पड़ा और उसकी पाँच तोपे वही छूट गई। जैसे ही अंग्रेजी सेना इन तोपों को कब्जे में लेने के लिए वहाँ पहुँची, वही छुपे एक भारतीय सिपाही ने बारूद में आग लगा दी, जिससे एक भयंकर विस्फोट में अंग्रेज सेनापति कै. एण्ड्रूज और 10 अंग्रेज सैनिक मारे गए। इस प्रकार इन वीर गुर्जरो ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों से भी अपने साहस और देशभक्ति का लोहा मनवा लिया। एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था कि ”ऐसे लोगों से ही युद्ध का इतिहास चमत्कृत होता है।अगले दिन गुर्जरो ने दोपहर में अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया यह बेहद गर्म दिन था और अंग्रेज गर्मी से बेहाल हो रहे थे। भारतीयों ने हिंडन के निकट एक टीले से तोपों के गोलों की वर्षा कर दी। अंग्रेजों ने जवाबी गोलाबारी की। 2 घंटे चली इस गोलाबारी में लै0 नैपियर और 60वीं रायफल्स के 11 जवान मारे गए तथा बहुत से अंग्रेज घायल हो गए।15 अंग्रेज गुर्जरो से लड़ते-2 पस्त हो गए, हालांकि अंग्रेज सेनापति जनरल विल्सन ने इसके लिए भयंकर गर्मी को दोषी माना। गुर्जर भी एक अंग्रेज परस्त गांव को आग लगाकर सुरक्षित लौट गए।1 जून 1851 को अंग्रेजों की मदद को गोरखा पलटन हिंडन पहुँच गई तिस पर भी अंग्रेजी सेना आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सकी और बागपत की तरफ मुड़ गई।16 इस प्रकार गुर्जरो ने 30, 31 मई 1857 को लड़े
गए हिंडन के युद्ध में साहस और देशभक्ति की एक ऐसी कहानी लिख दी, जिसमें दो अंग्रेजी सेनाओं के ना मिलने देने के लक्ष्य को पूरा करते हुए, उन्होंने अंग्रेजी बहादुरी के दर्प को चूर-चूर कर दिया।





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