Saturday 11 February 2017

वीरांगना आशादेवी गुर्जराणी -1857 विद्रोह की महानायिका /Veerangna Asha Devi Gurjarani

शहीद वीरांगना आशादेवी गुर्जराणी - Veerangna Asha Devi Gurjarani

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Veerangna Ashadevi Gujarani - 1857 Revoution of India


भारत माँ को अपने सपूतों पर गर्व हैं, जिन्होंने उनकी मर्यादा की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व लूटा दिया। इतिहास में ऐसे कई लाल हुए हैं, जिन्होंने अपनी जान से भी अधिक महत्व इस देश की आजादी को दिया। यही कारण है कि कृतज्ञ भारत उन्हें हमेशा याद रखता आया है और आगे भी रखेगा।भारतीयों ने ब्रितानियों की दासता से मुक्ति प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम प्रयास 1857 ईं. में किया था, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है।  इस गदर की शुरूआत मेरठ से दस मई 1857 को कोतवाल धनसिहँ गुर्जर ने की ।

 अँग्रेज़ी सत्ता को नष्ट करने का पहला समूल प्रयास 1857 ई. में ही हुआ था, जिसमें न केवल क्रांतिकारियों ने अपितु भारतीय जनता ने भी खुलकर भाग लिया था। अँग्रेज़ और कुछ भारतीय चाटुकार इतिहासकार भले ही अपनी संतुष्टि के लिए सिपाही विद्रोह मानते हों, परंतु वास्तव में यह जन मानस का विद्रोह था। इसमें असंख्य लोग मारे गए। कुछ को भयंकर यातनाएँ दी गई, कुछ को ज़िंदा अग्नि देव का भेंट चढ़ा दिया गया, परंतु भारत भूमि इससे विचलित नहीं हुई।

जिन महानतम विभूतियों ने जीवन पर्यंत याद किया जाता है उनमें से एक थी मुजफ्फरनगर की कल्श्सान कुल की वीरांगना आशादेवी गुर्जराणी है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर( अब शामली जिला ) के कल्श्सान खाप की वीर युवती  ( जन्म - 1829 ) का मानना था कि आजादी की लडाई मे सिर्फ सैनिको का लडना ही काफी नही है बल्कि समाज के हर तबके के लोगो को कंधे से कंधा मिलाकर जंगे आजादी मे शामिल होना चाहिए  । इस क्रान्तिकारी सोच के तहत गुर्जरो के गाव की इस साधारण सी गुर्जर महिला ने महिलाओ को सगठित कर अपनी सैना बना ली  । 

1857 के संग्राम मे उस वीरांगना युवती ने अग्रेजो को काफी मश्किलो मे डाला ओर आस - पास के क्षेत्रो मे अपना दबदबा कायम  करलिया ।
आशादेवी गुर्जराणी के संगठन की ताकत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता हे कि सगठन की 250 महिला सैनिको की शहादत के बाद ही अग्रेज सेना आशादैवी को युद्धभूमि मे जिन्दा पकड सकी थी  । ग्यारह अन्य महिला सैनिको के साथ बर्बर अग्रेजो ने आशादेवी को फासी पर लटका दिया  । अपनी बहादुरी से सोये हुए भारत मे शोर्य ओर पराक्रम का आशादेवी गुर्जराणी ने एक बार फिर नया सचांर किया । 

Veerangna Asha Devi Gujari / वीरांगना आशा देवी गुर्जराणी

सन्दर्भ :--

सुरेश नीरव,  कादम्बिनी : 
अगस्त - 2006 पृष्ट - 82



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Monday 2 January 2017

उमराव सिंह परमार माणकपुरिया 1857 | Umrao Singh Manakpuria - 1857 Revolt

उमराव सिंह परमार गूर्जर, माणकपुर 1857 का गदर | Umrao Singh Parmar Gurjar (Manakpuria) - 1857 Revolt

Umrao Singh Parmar Gurjar - 1857 Mutiny


उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र के लोगों ने सबसे पहले 1822-1825 ई0 राजा विजय सिंह गुर्जर व कल्याण सिंह गुर्जर के नेतृत्व में अंग्रेंजी राज को भारत को उखाड़े फैंकने का श्रीगणेश किया था। ऐसे ही 'धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व मे 1857 की क्रान्ति की शूरूआत हुई। जैसे ही 1857 की क्रान्ति की ज्वाला धधकी सहारनपुर के गुर्जर अंग्रेंजी हकूमत से उनके साथ हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिये उतावले हो गये । माणकपुर के निवासी उमराव सिंह को जो इस क्षेत्र के प्रभावशाली एवं दबंग व बहादुर व्यक्ति थे वहां की गुर्जर जनता ने उसे अपना राजा घोषित कर दिया ।उनका गोत्र परमार था l जिस प्रकार दादरी के गुर्जर राजा उमराव सिंह भाटी दादरी, राव कदम सिंह गूर्जर परीक्षितगढ़ की राजाज्ञाएं निकलती थी उसी प्रकार माणकपुर के उमराव सिंह गुर्जर की भी राजाज्ञाएं निकलने लगी। ’फिरंगी को मार भगाओ, देश को आजाद कराओ । इन्हें मालगुजारी मत दो, थाणे तहसील पर कब्जा करो, संगठित हो जाओ। इन राजाज्ञाओं का व्यापक असर क्षेत्र पर होने लगा । मालगुजारी राजा उपराव सिंह को दी जाने लगी । नुकड़, सरसावा, मंगलौर, पुरकाजी, बूढ़ा खेड़ी, सोढ़ौली, रणधावा, फतेहपुर, बाबूपुर, साॅपला, गदरदेड़ी, लखनौती पुरकाजी आदि गांवों के गूर्जरों ने संगठित होकर उमराव सिंह के नेतृत्व में सहारनपुर जिले के प्रशासन को एकदम ठप्पा कर दिया और प्रशासन पर क्रान्किारियों का कब्जा हो गया । गुर्जरों के साथ रांघड़ मुसलमान व पुण्डीर भी कन्धे से कंधा मिलाकर अंग्रेंज सरकार से टक्कर ले रहे थे । गंगोह की गुर्जर जनता ने फलुवा गुर्जर को अपना नेता बना कर इस क्षेत्र में भारी उपद्रव व अशान्ति पैदा कर दी थी।

नुकड़ तहसील, थाणा, मंगलौर में भी वही हाल, सरसावा पर भी अधिकार सहारनपुर के सुरक्षा अधिकारी स्पनकी तथा रार्बटसन के साथ राजा उमराव सिंह के नेतृत्व में डटकर टक्कर हुई । इस अंग्रेंज अधिकारियों ने गुर्जरों का दमन करने के लिए सेना का प्रयोग किया । गांवों पर बाकायदा तैयारी कर के सेना, स्पनकी और राबर्टसन के नेतृत्व में चढ़ाई करती थी, लेकिन गुर्जर बड़े हौंसले से टक्कर लेते थे उपरोक्त जिन गांवों का विशेषकर जिक्र किया है उनके जवाबी हमले भी होते रहे । आधुकिनतम हथियारों से लैस अंग्रेंजी सेना व उनके पिटू भारतीय सेना ने इन गांवों को जलाकर राख कर दिया, इनकी जमीन जायदाद जब्त की गई । माणिकपुर के राजा उमराव सिंह, गंगोह के फतुआ गुर्जर तथा इनके प्रमुख साथियों को फांसी दी गई और अनेक देशभक्त गुर्जरों को गांवों में ही गोली से उड़ा दिया गया, या वृक्षों पर फांसी का फन्दा डालकर लटका दिया ।

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शहीद झंडु सिंह नंबरदार 1857 | Saheed Jhandu Singh Nambardar - Great Freedom Fighter of 1857 Revolt

शहीद झंडु सिंह नंबरदार 1857 | Saheed Jhandu Singh Nambardar - Great Freedom Fighter of 1857 Revolt


शहीद झंडु सिंह नंबरदार 1857 | Saheed Jhandu Singh Nambardar - Great Freedom Fighter of 1857 Revolt


10 मई 1857 को मेरठ में क्रान्ति के विस्फोट के बाद मेरठ के आस-पास स्थित गुर्जरो के गांवों ने अंग्रेजी राज की धज्जिया उड़ा दी। अंग्रेजों ने सबसे पहले उन गांवों को सजा देने पर विचार किया जिन्होंने 10 मई की रात को मेरठ में क्रान्ति में बढ़ चढ़कर भाग लिया था और उसके बाद मेरठ के बाहर जाने वाले आगरा, दिल्ली आदि मार्गो को पूरी तरह से रेाक दिया था। जिसकी वजह से मेरठ का सम्पर्क अन्य केन्द्रों से कट गया था। इस क्रम में सबसे पहले 24 मई को 'इख्तयारपुर' पर और उसके तुरन्त बाद 3 जून को 'लिसाड़ी' , 'नूर नगर' और 'गगोल गांव' पर अंग्रेजों ने हमला किया। ये तीनों गांव मेरठ के दक्षिण में स्थित 3 से 6 मील की दूरी पर स्थित थे। लिसारी और नूरनगर तो अब मेरठ महानगर का हिस्सा बन गए हैं। गगोल प्राचीन काल में श्रषि विष्वामित्र की तप स्थली रहा है और इसका पौराणिक महत्व है।  नूरनगर, लिसाड़ी और गगोल के किसान उन क्रान्तिवीरों में से थे जो 10 मई 1857 की रात को घाट, पांचली, नंगला आदि के किसानों के साथ कोतवाल धनसिंह गुर्जर के बुलावे पर मेरठ पहुँचे थे। अंग्रेजी दस्तावेजों से यह साबित हो गया है कि धनसिंह कोतवाल के नेतृत्व में सदर कोतवाली की पुलिस और इन किसनों ने क्रान्तिकारी घटनाओं का अंजाम दिया था। इन किसानों ने कैण्ट और सदर में भारी तबाही मचाने के बाद रात 2 बजे मेरठ की नई जेल तोड़ कर 839 कैदियों को रिहा कर दिया। 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के साथ-साथ हुए इस आम जनता के विद्रोह से अंग्रेज ऐसे हतप्रभ रह गए कि उन्होंने अपने आप को मेरठ स्थित दमदमें में बन्द कर लिया। वह यह तक न जान सके विद्रोही सैनिक किस ओर गए हैं ?  इस घटना के बाद नूरनगर, लिसाड़ी, और गगोल के क्रान्तिकारियों बुलन्दशहर आगरा रोड़ को रोक दिया और डाक व्यवस्था भंग कर दी। आगरा उस समय उत्तरपश्चिम प्रांत की राजधानी थी। अंग्रेज आगरा से सम्पर्क टूट जाने से बहुत परेषान हुए। गगोल आदि गाँवों के इन क्रान्तिकारियों का नेतृत्व गगोल के झण्डा सिंह गुर्जर उर्फ झण्डू दादा कर रहे थे। उनके नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजली बम्बे के पास अंग्रेज़ी  सेना के एक कैम्प को ध्वस्त कर दिया था। आखिरकार 3 जून को अंग्रेजो ने नूरनगर लिसाड़ी और गगोल पर हमला बोला। अंग्रेजी सेना के पास काराबाइने थी और उसका नेतृत्व टर्नबुल कर रहा था। मेरठ शहर के कोतवाल बिशन सिंह, जो कि रेवाड़ी के क्रान्तिकारी नेता राजा तुलाराव का भाई था, को अंग्रेजी सेना को गाईड का काम करना था। परन्तु वह भी क्रान्ति के प्रभाव में आ चुका था। उसने गगोल पर होने वाले हमले की खबर वहां पहुँचा दी और जानबूझ कर अंग्रेजी सेना के पास देर से पहुँचा। इसका नतीजा भारतीयों के हक में रहा, जब यह सेना गगोल पहुँची तो सभी ग्रामीण वहाँ से भाग चुके थे। अंग्रेजो ने पूरे गाँव को आग लगा दी। बिशन सिंह भी सजा से बचने के लिए नारनौल, हरियाणा भाग गए जहाँ वे अग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए।कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने फिर से गगोल पर हमला किया और बगावत करने के आरोप में 9 लोग रामसहाय, घसीटा सिंह, रम्मन सिंह, हरजस सिंह, हिम्मत सिंह, कढेरा सिंह, शिब्बा सिंह बैरम और दरबा सिंह को गिरफ्तार कर लिया। इन क्रान्तिवीरों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और दषहरे के दिन इन 9 क्रान्तिकारियों को चैराहे पर फांसी से लटका दिया गया। तब से लेकर आज तक गगोल गांव में लोग दशहरा नहीं मनाते हैं। इन शहीदों की याद में गांववासियों ने, 1857 की क्रान्ति के गवाह के रूप में आज भी उपस्थित प्राचीन पीपल के पेड़ के नीचे, एक देवस्थान बना रखा है। जहाँ दशहरे के दिन अपने बलिदानी पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। सरकार आज भी इस ओर से उदासीन है गगोल में न कोई सरकारी स्मारक है न ही कोई ऐसा सरकारी महाविद्यालय, अस्पताल आदि हैं जो इन शहीदों को समर्पित हो।
Jhandu Singh Gurjar Nambardar - 1857 revolution


                                                                                                  संदर्भ


1. डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर आफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857-58।
2. नैरेटिव आफ इवैनटस अटैन्डिग दि आउटब्रेक आफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रैस्टोरेशन आफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट आफ मेरठ इन 1857-58
3. एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड।
4. एस0 ए0 ए0 रिजवी, फीड स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश  खण्ड-5
5. ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर।
6. आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, जनमत प्रकाशन, मेरठ 1993





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