1857 क्रान्ति के महानायक अमर शहीद - राव कदम सिंह गुर्जर
A Great Freedom Fighter - Rao Kadam Singh Gurjar |
ये क्रान्तिकारी कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बांध कर चलते थे।
मेरठ के तत्कालीन कलक्टर 'आर0 एच0 डनलप' द्वारा मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को लिखे पत्र से पता चलता है कि गुर्जर क्रान्तिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर दिया और परीक्षतगढ़ के राव कदम सिंह गुर्जर को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया।
राव कदम सिंह और दलेल सिंह गुर्जर के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने परीक्षतगढ़ की पुलिस पर हमला बोल दिया और उसे मेरठ तक खदेड दिया।उसके बाद, अंग्रेजो से सम्भावित युद्ध की तैयारी में परीक्षतगढ़ के किले पर तीन तोपे चढ़ा दी। ये तोपे तब से किले में ही दबी पडी थी जब सन् 1803 में अंग्रेजो ने दोआब में अपनी सत्ता जमाई थी।
इसके बाद हिम्मतपुर ओर बुकलाना के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह गुर्जर के नेतृत्व में गठित क्रान्तिकारी सरकार की स्थापना के लिए अंग्रेज परस्त गाॅवों पर हमला बोल दिया और बहुत से गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया। क्रान्तिकारियों ने इन गांव से जबरन लगान वसूला।राव कदम सिंह गुर्जर बहसूमा परीक्षतगढ़ रियासत के अंतिम राजा नैन सिंह गुर्जर नांगडी के भाई का पौत्र था।
राजा नैन सिंह गुर्जर के समय रियासत में 349 गांव थे और इसका क्षेत्रफल लगभग 800 वर्ग मील था। 1818 में नैन सिंह गुर्जर के मृत्यू के बाद अंग्रेजो ने रियासत पर कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र के लोग पुनः अपना राज चाहते थे, इसलिए क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह गुर्जर को अपना राजा घोषित कर दिया।
10 मई 1857 को कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में गुर्जर क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह गुर्जर के निर्देश पर सभी सड़के रोक दी और अंग्रेजों के यातायात और संचार को ठप कर दिया।
मार्ग से निकलने वाले सभी यूरोपियनो को लूट लिया। मवाना-हस्तिनापुर के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के भाई दलेल सिंह, पिर्थी सिंह और देवी सिंह के नेतृत्व में बिजनौर के विद्रोहियों के साथ साझा मोर्चा गठित किया और बिजनौर के मण्डावर, दारानगर और धनौरा क्षेत्र में धावे मारकर वहाँ अंग्रेजी राज को हिला दिया। इनकी अगली योजना मण्डावर के क्रान्तिकारियों के साथ बिजनौर पर हमला करने की थी। मेरठ और बिजनौर दोनो ओर के घाटो, विशेषकर दारानगर और रावली घाट, पर राव कदमसिंह गुर्जर का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कदम सिंह विद्रोही हो चुकी बरेली बिग्रेड के नेता बख्त खान के सम्पर्क में था क्योकि उसके समर्थकों ने ही बरेली बिग्रेड को गंगा पर करने के लिए नावे उपलब्ध कराई थी।इससे पहले अंग्रेजो ने बरेली के विद्रोहियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के नावो के पुल को तोड दिया था।27 जून 1857 को बरेली बिग्रेड का बिना अंग्रेजी विरोध के गंगा पार कर दिल्ली चले जाना खुले विद्रोह का संकेत था। मेरठ में क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह गुर्जर को राजा घोषित किया और खुलकर विद्रोह कर दिया।
28 जून 1857 को मेजर नरल हैविट को लिखे पत्र में कलक्टर डनलप ने मेरठ के हालातो पर चर्चा करते हुये लिखा कि यदि हमने शत्रुओ को सजा देने और अपने दोस्तों की मदद करने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो जनता हमारा पूरी तरह साथ छोड़ देगी और आज का सैनिक और जनता का विद्रोह कल व्यापक क्रान्ति में परिवर्तित हो जायेगा।
मेरठ के क्रान्तिकारी हालातो पर काबू पाने के लिए अंग्रेजो ने मेजर विलयम्स के नेतृत्व में खाकी रिसाले का गठन किया।
जिसने 4 जुलाई 1857 को पहला हमला पांचली गांव पर किया। इस घटना के बाद राव कदम सिंह गुर्जर ने परीक्षतगढ़ छोड दिया और बहसूमा में मोर्चा लगाया,जहाँ गंगा खादर से उन्होने अंग्रेजो के खिलाफ लडाई जारी रखी।18 सितम्बर को राव कदम सिंह गुर्जर के समर्थक क्रान्तिकारियों ने मवाना पर हमला बोल दिया और तहसील को घेर लिया।खाकी रिसाले के वहाँ पहुचने के कारण क्रान्तिकारियों को पीछे हटना पडा। 20 सितम्बर को अंग्रेजो ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया।हालातों को देखते हुये राव कदम सिंह गुर्जर एवं दलेल सिंह गुर्जर अपने हजारो समर्थको के साथ गंगा के पार बिजनौर चले गए जहाँ नवाब महमूद खान के नेतृत्व में अभी भी क्रान्तिकारी सरकार चल रही थी। थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से तीन मुगल शहजादे भी भाग कर बिजनौर पहुँच गए।
राव कदम सिंह गुर्जर के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजनौर से नदी पार कर कई अभियान किये। उन्होने रंजीतपुर मे हमला बोलकर अंग्रेजो के घोडे छीन लिये।
5 जनवरी 1858 को नदी पार कर मीरापुर मुज़फ्फरनगर मे पुलिस थाने को आग लगा दी। इसके बाद हरिद्वार क्षेत्र में मायापुर गंगा नहर चौकी पर हमला बोल दिया।कनखल में अंग्रेजो के बंगले जला दिये। इन अभियानों से उत्साहित होकर नवाब महमूद खान ने कदम सिंह एवं दलेल सिंह आदि के साथ मेरठ पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु उससे पहले ही 28 अप्रैल 1858 को बिजनौर में क्रान्तिकारियों की हार हो गई और अंग्रेजो ने नवाब को रामपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद बरेली मे मे भी क्रान्तिकारी हार गए।
संदर्भ
1. डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर ऑफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857-58।
2. नैरेटिव ऑफ इवैनटस अटैन्डिग दि आउटब्रेक ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रैस्टोरशन ऑफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मेरठ इन 1857-58।
3. एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड।
4. एस0 ए0 ए0 रिजवी, फीड स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड-5
5. ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर।
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