1857 क्रान्ति के महानायक अमर शहीद दरियावसिंह नागर गुर्जर
Dariyaav Singh Gurjar - A Great Freedom Fighter of 1857 Revolt |
दरियाव सिंह गुर्जर बहुत ही वीर,साहसी थे इनके डर के चलते अंग्रेजी सेना भी इलाके में नही आती थी। ये नागर (नांगडी) गौत्र के वीर गुर्जर थे।इनका जन्म दनकौर (उ.प्र) के निकट ग्राम जुनैदपुर मे हुआ था। जो अब वर्तमान मे ग्रेटर नौएडा क्षेत्र मे आता है।
और 1857 के महानायको मे से एक थे। बुलन्दशहर के काले आम का खूनी दांश्ता को भला कौन नही जानता। जिसपर सैकडो वीर गुर्जरो को लटकाया गया। उस खुनी संग्राम मे एक नाम दरियाव सिंह गुर्जर का भी था । इनके नेत्रत्व मे आसपास के ग्रामीणो गुर्जरो ने अंग्रेजी सैना से लगातार कई दिन युध्द किए और अंग्रेजी हुकुमत से अपना लोहा मनवाया। इनके गाँव जुनैदपुर के ठीक सामने कई अंग्रेजो की कोठीयाँ और किले बने थे जो आज भी मौजूद है।लेकिन दरियाव सिंह गुर्जर के खौफ से अंग्रेजो की इलाके मे घुसने की भी हिम्मत नही होती थी । दरियाव सिंह की 1857 के स्वतंत्रा संग्राम मे महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।10 मई को मेरठ से 1857 की जन-क्रान्ति की शुरूआत कोतवाल धनसिंह गुर्जर द्वारा हो चुकी थी । दरियाव सिंह और उनके नेत्रत्व मे ग्रामीण क्रांतिकारियों ने 1857 के गदर मे अंग्रेजी हुकुमत के छक्के छुड़ा दिए थे।तत्कालीन राष्टृीय भावना से ओतप्रोत दरियाव सिंह गुर्जर ने आसपास के ग्रामीणो को प्रेरित किया। दूसरी तरफ दादरी रिसायत के राजा उमरावसिंह गुर्जर ने भी आसपास के सभी गाँव के ग्रामीणो को एकत्र करलिया था और फिर गुर्जरो ने 12 मई 1857 को सिकन्द्राबाद तहसील पर धावा बोल दिया। वहाँ के हथ्यार और खजानो को अपने अधिकार मे कर लिया। इसकी सूचना मिलते ही बुलन्दशहर से सिटी मजिस्ट्रेट सैनिक बल सिक्नद्राबाद पहुँच गया। और दरियाव सिंह और उनकी क्रान्तिकारी सैना ने अंग्रेजो की काफी जनहानी की। लेकिन दरियाव सिंह गुर्जर समेत पांच वीर गुर्जर पकडे गये। उनको बंदी बना लिया गया और 14 मई 1857 को बुलंदशहर में काला आम पर फांसी दी गई। लेकिन ये खुनी जंग यहा नही रूकी। उसके बाद भी 7 दिन तक क्रान्तिकारी सैना ने उमराव सिंह गुर्जर के नेत्रत्व अंग्रेज सैना से ट्क्कर लेती रही । अंत मे 19 मई को सश्स्त्र सैना के सामने क्रान्तिकारी वीरो को हथियार डालने पडे 46 लोगो को बंदी बनाया गया । उमरावसिंह गुर्जर बच निकले । इस क्रान्तिकारी सैना मे गुर्जर समुदाय की मुख्य भूमिका होने के कारण उन्हे ब्रिटिश सत्ता का कोप भोजन होना पडा।उमरावसिंह गुर्जर अपने दल के साथ 21 मई को बुलन्दशहर पहुचे एवं जिला कारागार पर घावा बोलकर अपने सभी राजबंदियो को छुडा लिया । बुलन्दशहर से अंग्रेजी शासन समाप्त होने के बिंदु पर था लेकिन बाहर से सैना की मदद आ जाने से यह संभव नही हो सका
हिंडन नदी के तट पर 30 व 31 मई को क्रान्तिकारी सैना और अंग्रेजी सैना के बीच एक ऐतिहासिक भीषण युद्ध हुआ। जिसकी कमान क्रान्तिनायक धनसिहँ गुर्जर, राव उमराव सिहँ गुर्जर, राव रोशन सिहँ गुर्जर व दरियाव सिंह गुर्जर के हाथ मे थी। इस युद्ध में अंग्रेजो को मुहँ की खानी पडी थी।
26 सितम्बर, 1857 को कासना-सुरजपुर के बीच उमरावसिंह की अंग्रेजी सैना से भारी टक्कर हुई । लेकिन दिल्ली के पतन और बाकी राज्यो के क्रान्ति मे हिस्सा ने लेने के कारण क्रान्तिकारी सैना का उत्साह भंग हो चुका था । भारी जन हानी के बाद क्रान्तिकारी सैना ने पराजय श्वीकार करली । उमरावसिंह गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया गया । इस जनक्रान्ति के विफल हो जाने पर बुलंदशहर के काले आम पर
80 वीर गुर्जर और उनकी नेत्र्तव मे हजारो क्रान्तिकारी शहीद हुए इनमे किसी को हाथी के पैर से कुचलवाया तो किसी को फांसी पर लटकाया । राजा राव उमराव सिहँ गुर्जर, राव रोशन सिहँ गुर्जर, राव बिशन सिहँ गुर्जर और सैकडो वीरो को भी बुलन्दशहर मे कालेआम के चौहराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया ।
वर्तमान मे दरियाव सिंह गुर्जर के नाम से चौक बनाया गया है। और उनके नाम रोड का नामकरण किया गया है। (दरियाव सिंह गुर्जर मार्ग) और हर साल इनके नाम से बडे स्तर पर कुश्ती और मेले का आयोजन होता है। और उस वक्त जगह जगह इनके पोस्टर छपे हुए आप देख सकते है। ये बहुत ही अच्छा कार्य हुआ है
इन वीर शहीदो के बारे मे कुछ इतिहासकारो को छोडकर ,किसी ने लिखने का कष्ट नही किया । यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इन शहीद क्रान्तिकारीयो को इनका सम्मान दिलाने के लिए किसी ने भी कदम नही बढाया। बल्की कंही नाम दबाया गया तो कंही इनके नाम की जगह सिर्फ जनता बोलकर दो शब्द मे ही किस्सा खत्म करदिया।
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